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लंबे समय से कब्ज़ की समस्या? जानिए आसान और असरदार उपाय:

क्रॉनिक कब्ज़ क्या है और यह सामान्य कब्ज़ से कैसे अलग है?

  • क्रॉनिक कब्ज़ का मतलब है लंबे समय तक यानी कई हफ्तों या महीनों तक लगातार मल त्याग में कठिनाई होना। सामान्य कब्ज़ अक्सर कुछ दिनों या अस्थायी कारणों की वजह से होती है,
  • जैसे पानी कम पीना या यात्रा के दौरान डाइट बदलना। लेकिन क्रॉनिक कब्ज़ बार-बार होने वाली और लगातार बनी रहने वाली समस्या है, जिसमें हफ़्ते में 2–3 बार से भी कम मल त्याग होता है,
  • मल बहुत सख्त हो जाता है और टॉयलेट के बाद भी पूरा खाली न होने का एहसास बना रहता है।

क्रॉनिक कब्ज़ के प्रमुख कारण क्या होते हैं?

  • इसके कई कारण हो सकते हैं – पानी और फाइबर की कमी, शारीरिक गतिविधि का अभाव, ज़्यादा तला-भुना या प्रोसेस्ड फूड खाना, दवाइयों के साइड इफेक्ट (जैसे एंटी-डिप्रेशेंट या आयरन सप्लीमेंट), हार्मोनल असंतुलन, डायबिटीज़, थायरॉयड की समस्या, या फिर आंतों की गति धीमी होना।
  • कुछ मामलों में यह मानसिक तनाव और चिंता से भी जुड़ा हो सकता है।

क्या पानी की कमी कब्ज़ का बड़ा कारण है?

  • हाँ, पानी की कमी सबसे बड़ा कारणों में से एक है।
  • जब शरीर में पर्याप्त पानी नहीं पहुँचता तो आंतें मल से ज़्यादा पानी सोख लेती हैं,
  • जिससे मल सख्त हो जाता है और बाहर निकालना मुश्किल हो जाता है।
  • दिन में 8–10 गिलास पानी पीना, खासकर गुनगुना पानी, क्रॉनिक कब्ज़ को काफ़ी हद तक कम कर सकता है।

फाइबर कब्ज़ से राहत दिलाने में कैसे मदद करता है?

  • फाइबर (रेशेदार पदार्थ) मल को मुलायम बनाने और उसकी मात्रा बढ़ाने में मदद करता है।
  • यह आंतों की गति को भी तेज करता है। सब्ज़ियाँ, फल, दालें, साबुत अनाज और सलाद कब्ज़ को दूर करने के लिए बेहद असरदार होते हैं।
  • घुलनशील फाइबर (जैसे ओट्स, इसबगोल) और अघुलनशील फाइबर (जैसे गेहूँ की भूसी, हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ) दोनों का सेवन ज़रूरी है।

क्या जीवनशैली में बदलाव कब्ज़ को कंट्रोल कर सकते हैं?

  • जी हाँ, जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव भी बड़ा असर डाल सकते हैं।
  • नियमित व्यायाम करना, योग और प्राणायाम को अपनाना, पर्याप्त नींद लेना और समय पर भोजन करना कब्ज़ से राहत दिलाने में मदद करता है। खासकर सुबह खाली पेट टहलना आंतों को एक्टिव करने के लिए फायदेमंद माना जाता है।

क्या तनाव और चिंता कब्ज़ का कारण बन सकते हैं?

  • हाँ, दिमाग और आंतों का गहरा रिश्ता होता है। तनाव और चिंता आंतों की मांसपेशियों की गति को प्रभावित करते हैं। इसी कारण लंबे समय तक स्ट्रेस रहने पर कब्ज़ क्रॉनिक रूप ले सकता है।
  • ध्यान (Meditation), योग और रिलैक्सेशन तकनीक अपनाना कब्ज़ को मैनेज करने का एक असरदार तरीका है।

कौन-कौन सी दवाइयाँ कब्ज़ बढ़ा सकती हैं?

  • कई दवाइयों का साइड इफेक्ट कब्ज़ के रूप में सामने आता है।
  • जैसे आयरन सप्लीमेंट, एंटी-डिप्रेशेंट, एंटी-एलर्जिक, ब्लड प्रेशर की कुछ दवाइयाँ और पेनकिलर्स।
  • अगर किसी को ऐसी दवाइयों से कब्ज़ हो रही है तो डॉक्टर से सलाह लेकर उनका विकल्प बदलना ज़रूरी हो सकता है।

क्या कब्ज़ में व्यायाम मददगार होता है?

हाँ, व्यायाम आंतों की गति (Peristalsis) को बढ़ाता है, जिससे मल आसानी से आगे बढ़ता है। हल्की दौड़, साइकिलिंग, योगासन (पवनमुक्तासन, पश्चिमोत्तानासन) और नियमित वॉक कब्ज़ को कम करने में बहुत असरदार हैं।

सुबह की आदतें कब्ज़ को कैसे प्रभावित करती हैं?

सुबह उठकर तुरंत पानी पीना, टॉयलेट जाने की आदत डालना और नाश्ता कभी न छोड़ना आंतों की कार्यक्षमता को बेहतर बनाता है। लंबे समय तक टॉयलेट रोकना कब्ज़ को और गंभीर बना देता है।

क्या कब्ज़ में दूध और डेयरी उत्पाद नुकसानदायक हैं?

कुछ लोगों को लैक्टोज इनटॉलरेंस होती है, यानी दूध पचाने में दिक्कत होती है। ऐसे मामलों में दूध और डेयरी उत्पाद कब्ज़ बढ़ा सकते हैं। लेकिन दही, छाछ और पनीर अक्सर आसानी से पच जाते हैं और फायदेमंद हो सकते हैं।

क्या ज्यादा चाय और कॉफी कब्ज़ बढ़ाते हैं?

चाय और कॉफी में कैफीन होता है, जो शुरुआत में आंतों को उत्तेजित करता है लेकिन लंबे समय तक और अधिक मात्रा में सेवन करने से शरीर डिहाइड्रेट हो सकता है। डिहाइड्रेशन से मल सख्त हो जाता है और कब्ज़ बढ़ जाती है।

क्या घरेलू नुस्खे क्रॉनिक कब्ज़ में असरदार हैं?

हाँ, कई घरेलू नुस्खे मददगार साबित होते हैं – गुनगुना पानी पीना, रात को इसबगोल या अलसी के बीज लेना, सूखे अंजीर और किशमिश खाना, पपीता और अमरूद जैसे फल खाना कब्ज़ में तुरंत राहत देते हैं।

क्या कब्ज़ का इलाज सिर्फ़ लेक्सेटिव से किया जा सकता है?

लेक्सेटिव (जुलाब) कब्ज़ में तुरंत राहत देते हैं, लेकिन इन पर निर्भर रहना सही नहीं है। लंबे समय तक लगातार इस्तेमाल करने से आंतें इन पर निर्भर हो जाती हैं और खुद से काम करना बंद कर देती हैं। इन्हें सिर्फ़ डॉक्टर की सलाह पर और थोड़े समय के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।

क्या बच्चों और बुज़ुर्गों में कब्ज़ के कारण अलग होते हैं?

हाँ, बच्चों में कब्ज़ अक्सर दूध की अधिकता, पानी और फाइबर की कमी या टॉयलेट ट्रेनिंग की आदतों की वजह से होता है। वहीं बुज़ुर्गों में शारीरिक गतिविधि की कमी, दवाइयाँ और आंतों की गति धीमी होने से क्रॉनिक कब्ज़ ज़्यादा पाई जाती है।

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